धार्मिक मान्यता है कि भागीरथी की तपस्या के बाद गंगा माता ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को ही धरती पर अवतरित हुई थीं। ऐसे में सनातन धर्म के अनुयायी इस दिन गंगा दशहरा का पर्व मनाते हुए गंगा स्त्रोत का पाठ करते हैं और जगह – जगह शरबत का वितरण करते हैं। मंदिरों में महादेव का गंगाजल से अभिषेक करते हैं।
यह बातें रविवार को सासनी में गंगा दशहरे के मौके पर जगह-जगह गये मीठे शर्बत वितरण के दौरान आचार्य खगेन्द्र शास्त्री ने बताई। गंगा दशहरा को मां गंगा की आराधना की गई। जो लोग गंगा घाट नहीं जा सके, उन्होंने नहाने के पानी में गंगाजल डालकर स्नान किया और परिवार के लिए सुख-शांति की प्रार्थना की। बच्चों की दीर्घायु के लिए सूर्यदेव का अर्घ्य अर्पित किए। प्रसाद का वितरण किया गया है। शहर के में मंदिर और मार्गो पर प्याऊ लगाकर राह चलते लोगों को मीठे जल का वितरण किया। भंडारे का आयोजन कर प्रसाद वितरित किया। दशहरा पर शरबत वितरण पर भीषण गर्मी में प्यास से व्याकुल राहगीरों ने छक कर शर्बत पीकर अपनी प्यास बुझाई। गंगा के धरती पर अवतरित होने की कथाओं को सुना गया। ज्योतिषाचार्य पंडित खगेन्द्र शास्त्री ने बताया कि मां गंगा पृथ्वी पर राजा भगीरथ की कठिन तपस्या से अवतरण हुआ था। अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए तपस्या की थी। गंगा जल से स्नान कर दान करना बहुत शुभ माना जाता है। उधर जो लोग हरिद्वार, ब्रजघाट मां गंगा की आराधना करने नहीं जा सके उन्होंने घरों में ही नहाने के पानी में गंगाजल डालकर आस्था के साथ गंगा स्नान कर विधि विधान से पूजा कर प्रार्थन की।
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