वैसे तो भगवान शिव का अभिषेक भारतवर्ष के सारे शिव मंदिरों में होता है। लेकिन श्रावण मास में कांवड़ के माध्यम से जल-अर्पण करने से वैभव और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। वेद-पुराणों सहित भगवान भोलेनाथ में भरोसा रखने वालों को विश्वास है कि कांवड़ यात्रा में जहां-जहां से जल भरा जाता है, वह गंगाजी की ही धारा होती है।
इसी विश्वास को लेकर अपने कंधों पर भारी से भारी कांवड लेकर कांवडिया अपने निकट स्थित श्री गंगाजी से जल लेकर सोमवार को भगवान शिव का जलाभिषेक करेंगे। भगवान् शिव का जलाभिषेक करने के लिए भक्त अपने कन्धों पर कांवड़ में जल लेकर अपनी यात्रा के लिए निकल पडे़े हैं। कांवड की जानकारी उस प्रसंग से प्राप्त होती है, जब मात-पितृ भक्त श्रवन कुमार अपने नेत्रहीन माता-पिता को कांवड में बैठाकर तीर्थयात्रा के लिए निकले थे। सासनी से निकले कांवडियों से पूछने पर बताया कि वह प्रतिवर्ष राजघाट, रामघाट, हरिद्वार हरि की पैडी से जल लेकर आते हैं और भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। कंधों पर भारी कांवड देखकर सभी भक्त उन्हें नमन करने लगे। बता दें कि शिव को श्रावण का सोमवार विशेष रूप से प्रिय है। श्रावण में भगवान आशुतोष का गंगाजल व पंचामृत से अभिषेक करने से शीतलता मिलती है। भगवान शिव की हरियाली से पूजा करने से विशेष पुण्य मिलता है। खासतौर से श्रावण मास के सोमवार को शिव का पूजन बेलपत्र, भांग, धतूरे, दूर्वाकुर आक्खे के पुष्प और लाल कनेर के पुष्पों से पूजन करने का प्रावधान है। इसके अलावा पांच तरह के जो अमृत बताए गए हैं उनमें दूध, दही, शहद, घी, शर्करा को मिलाकर बनाए गए पंचामृत से भगवान आशुतोष की पूजा कल्याणकारी होती है।