सिकंद्राराऊ-1 अगस्त। स्कूली वाहनों में नौनिहालों की जिंदगी से खिलवाड़ हो रहा है। बच्चों को डग्गामार वाहनों में भूसे की तरह भरकर ढोया जा रहा है। आए दिन घटनाएं भी हो रही हैं, लेकिन न तो शिक्षा महकमा सतर्क है, न ही अभिभावक और स्कूल प्रबंधन। दूसरी ओर पुलिस जहां चालान काटने में व्यस्त है, वहीं परिवहन विभाग नोटिस भेजकर टैक्स वसूली में जुटा हुआ है।
कस्बा व क्षेत्र के स्कूल जाने वाले बच्चे खतरे में हैं। जिस स्कूल बस, ऑटो, विक्रम, कार और मैजिक, ई रिक्शा से यह बच्चे जाते हैं। उन अधिकांश वाहनों की न तो फिटनेस है और न ही चालक प्रशिक्षित हैं। कई ऐसे वाहन हैं जिन्हें परिवहन विभाग कबाड़ घोषित कर चुका है। इस तरह के अधिक संख्या में वाहन दौड़ रहे हैं। इसके बाद भी इस पर न तो पुलिस की नजर है और न ही प्रशासनिक अधिकारियों की। बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले इसके लिए अभिभावक नामी गिरामी स्कूलों के चक्कर काट रहे हैं। चाहे स्कूल घर से पांच से दस किलोमीटर दूर ही क्यों न हो। स्कूल भी बच्चों को घर से स्कूल तक लाने व पहुंचाने के एवज में मोटी फीस वसूलते हैं। कुछ बड़े निजी स्कूलों ने तो बसों की व्यवस्था कर रखी है, लेकिन अधिकतर स्कूल परिवहन की व्यवस्था में फिसड्डी हैं। यहां तक कि बच्चे ऑटो, विक्रम, कार, ई रिक्शा और मैजिक से ढोए जा रहे हैं। ऐसे वाहन स्वामियों को बच्चों के सुरक्षा की कोई फिक्र नहीं है। अधिकांश वाहनों के तो परमिट हैं ही नहीं। बड़ी संख्या में ऐसे भी वाहन हैं, जिन्हें परिवहन विभाग कबाड़ घोषित कर चुका है। फिर भी इस तरह के वाहन बच्चों को भरकर सड़क पर दौड़ रहे हैं। ई रिक्शा, ऑटो और मैजिक चालक न सिर्फ नियम विपरीत वाहन चलाते हैं बल्कि स्कूली बच्चों से वे खलासीगिरी भी कराते हैं। बच्चे स्वयं अपना बैग वाहनों के कैरियर पर चढ़ाते हैं। यही नहीं कभी वाहन खराब होते हैं अथवा गड्ढे में फंस जाते है तो उन्हें बच्चे धक्का भी लगाते हैं। परिवहन विभाग व पुलिस की अनदेखी के चलते बिना पंजीयन वाले स्कूली वाहन कस्बा से लेकर ग्रामीण क्षेत्र की सड़कों पर बेधड़क दौड़ रहे हैं। स्कूल की तरफ से वाहन खरीदे हुए लंबा समय गुजरने के बाद भी कई वाहन मालिकों ने पंजीयन नंबर अंकित कराने की जहमत तक नहीं उठाई है। स्कूल वाहनों में प्राथमिक चिकित्सा का भी इंतजाम नहीं होता है। मानक के अनुसार चिकित्सा व्यवस्था, आग से बचाव के संसाधन होने के साथ ही चालक व परिचालक का ड्रेसकोड निर्धारित है। वाहन के खिड़की पर रॉड व जाली लगी होनी चाहिये। वाहन सवार बच्चों को सड़क पार कराने की जिम्मेदारी भी परिचालक की है। स्कूली वाहनों के लिए बने नियम कायदे सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं। स्कूली वाहनों की घटनाएं आए दिन प्रकाश में आती रहती हैं। बाबजूद इसके जिम्मेदार इन पर कार्रवाई करने से बचते नजर आ रहे हैं।
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नौनिहालों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे स्कूली वाहन
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