सासनी-15 मार्च। आगरा अलीगढ राजमार्ग स्थित श्री राधे-राधे गार्डन में में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान महायज्ञ में विश्व विख्यात भागवताचार्य अतुल कृष्ण शास्त्री महाराज ने संगीत स्वरलहरियों के मध्य अपनी मधुरवाणी से शुकदेव जी जन्म, नारद चरित्र और राजा परीक्षति की कथा का रोचक वर्णन किया। श्रीमद् भागवत कथा में श्रोताओं की भारी भीड़ उमड़ी।
श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान महायज्ञ के दूसरे दिन कथा में भागवताचार्य ने कथा में सुनाया कि महाभारत युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने से क्रोधित होकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोधित होकर पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र से लगने से अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था। सुख वैभव से समृद्ध राज्य था, वह जब साठ वर्ष के थे। एक दिन वह क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने आवाज लगाई, लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल कर चले गए। अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है। उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी। उस समय विद्वानों ने उन्हें सुखदेव का नाम सुझाया और इस प्रकार सुखदेव का आगमन हुआ। उसके बाद भागवताचार्य ने नारद चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि नारद जी अपने पूर्वजन्म मे वेदवादी ब्राह्मणों के यहाँ एक दासी पुत्र थे। इनका नाम हरिदास था, ये और इनकी माता संतो की सेवा किया करते थे। एक बार इनके गाँव मे चतुर्मास में कुछ संत आये। नारद जी को उनकी सेवा में नियुक्त कर दिया गया। ये निरंतर संतों का सत्संग सुनते और भगवान की लीला-कथाओं का श्रवण करते थे। सत्संग और गुरु-कृपा से इनके अंदर भी भगवान से मिलने की चाह जागने लगी। इस दौरान यज्ञाचार्य राजकृष्ण महाराज तथा राजा परीक्षित बने कृष्णकांत (कन्नू) वाष्र्णेय एवं उनकी पत्नी करिश्मा के साथ कल्यान दास, प्रमोद कुमार, भगवान दास वाष्र्णेय, शैलेश वाष्र्णेय, सचिन ललित, उषा वाष्र्णेय, सुनीता, वंशिका, कोमल, हिमांशु, प्रिंस, कृष्णा तिवारी, राजुल मौजूद थे। प्रमोद कुमार वाष्र्णेय, भगवानदास वाष्र्णेय, शैलेश वाष्र्णेय, सचिन वाष्र्णेय, ललित वाष्र्णेय, एवं समस्त वाष्र्णेय, परिवार तथा श्रोता भक्त मौजूद थे।