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September 9, 2024 11:38 pm

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ज्वार,बाजरा, मक्का की फसलों में सूड़ी से बचाव के बताएं उपाय

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हाथरस-7 अगस्त। जिला कृषि रक्षा अधिकारी आरके सिंह ने अवगत कराया है कि जनपद के अनेकों ग्रामों में वर्तमान खरीफ सीजन में ज्वार, बाजरा, मक्का आदि फसलों में तने की सूडी (फॉल आर्मी वर्म) के प्रकोप से अधिक क्षति हो रही है। उन्हांेने कृषकों को तने की सूडी से हो रही क्षति के प्रति सजग रहने तथा फसल की प्रारम्भिक अवस्था में ही इसका नियंत्रण करने की सलाह दी है। उन्होंने सूडी तथा इससे हो रही क्षति की पहचान के विषय में कृषकों को बताया कि इस कीट की मादा ज्यादातर पत्तियों की निचली सतह पर अण्डे देती हैं, कभी-कभी पत्तियों की ऊपरी सतह एवं तनों पर भी अण्डे दे देती हैं। इसकी मादा एकबार में 50-200 अण्डे एक से ज्यादा परत में अडें देकर सफेद झाग से ढक देती है। अण्डे हल्के पीले (क्रीम कलर) या भूरे रंग के होतेे हंै। ंिसस ंतउल ूवतउ का लार्वा भूरा धूसर रंग का होता है तथा इसके पाश्र्व में तीन पतली सफेद धारियॉ और सिर पर उल्टा अंग्रेजी का वाई अक्षर (घ्) दिखता है। शरीर के दूसरे अंतिम खण्ड पर वर्गाकार चार गहरे विन्दु दिखाई देते हंै तथा अन्य खण्डों पर चार छोटे-छोटे बिन्दु समलम्ब आकार में व्यवस्थित होते हैं। इस कीट का लार्वा मक्के के छोटे पौधों के गोभ के अन्दर घुसकर अपना भोजन प्राप्त करता है। इस कीट के प्रकोप की पहचान फसल की बढ़वार अवस्था में पत्तियों में छिद्र एवं पत्तियों के बाहरी किनारों पर इस कीट द्वारा उत्सर्जित पदार्थांे से की जा सकती हैै। उत्सर्जित पदार्थ महीन भूसे के बुरादे जैसा दिखाई देता है। उन्होंने फाल आर्मी वर्म (थ्।ॅ) का प्रभावी नियंत्रण प्रतिशत क्षति के आधार पर निम्नानुसार करने की सलाह कृषकों को दी। पॉच प्रतिशत क्षति की स्थिति में अण्ड परजीवी जैसे ट्राइकोग्रामा प्रेटिओसम अथवा टेलीनोमल रेमस के 50000 अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से इनकी संख्या की बढोत्तरी में रोक लगायी जा सकती है। यांत्रिक विधि के तौर पर सांयकाल (7 से 9 बजे तक ) में 3 से 4 की संख्या प्रति एकड में प्रकाश प्रपंच लगाना चाहिए। 6 से 8 की संख्या में बर्ड पर्चर प्रति एकड़ लगाकर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। 35-40 फेरोमोन ट्रेप प्रति हेक्टेयर की दर से लगाकर प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है। प्रारम्भिक अवस्था में पौधों की गोभ में रेत तथा बुझा हुआ चूना को 9ः1 के अनुपात में मिलाकर बुरकाव करने से इस कीट के लार्वा/सूडी का प्रकोप कम हो जाता है।
5 प्रतिशत पौध से अधिक तथा 10 प्रतिशत गोभ क्षति की अवस्था में कीट नियंत्रण हेतु एनपीवी 250 एलई अथवा मेटाराइजियम एनिप्सोली 5 ग्रा.प्रति ली. अथवा वैसिलस थुरिनजैनिसिस (ठण्ज्) 2 ग्रा. प्रति ली. की दर से प्रयोग कराना लाभकारी होता है। इस अवस्था में नीम ऑयल 5 मिली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से भी कीटों की संख्या पर नियंत्रण किया जा सकता है। 10-20 प्रतिशत क्षति की अवस्था में रासायनिक नियंत्रण प्रभावी होता है। इस हेतु क्लोरेन्ट्रानिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एस0सी0 0.4 मिली0 प्रति लीटर पानी अथवा इमामोक्टिन बेनजोइट 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा स्पाइनोसैड 0.3 मिली. प्रति लीटर पानी अथवा थायोमेथाक्सॉम 12.6 प्रतिशत$ लैम्ब्डासाइहैलोथ्रिन 9.5 प्रतिशत 0.5 मिली. प्रति लीटर पानी अथवा बीटा-साइॅफ्लोथी्रन 8.49 प्रतिशत$इमिडाक्लोप्रिड 19.81 प्रतिशत ओडी 1 से 50 एमएस प्रति एकड अथवा क्लोरेन्ट्रानिलीप्रोल 9.30 प्रतिशत$लैम्डा साइहेलोथ्रीन 4.60 प्रतिशत जैडसी 100 एमएल प्रति एकड की दर से पानी में घोल बनाकर सॉय के समय छिड़काव करना चाहिए।
उन्होनंे बताया कि सहगामी फसल निगरानी एवं निदान प्रणाली (पीसीएसआरएस) योजनान्र्तगत टोल फ्री नं0 9452247111 अथवा 9452257111 पर प्रभावित पौधों की फोटो सहित अपनी समस्या व पता लिखकर मैसेेज भेजकर 48 घण्टे के अन्दर निदान हेतु सुझाव प्राप्त करें, तथा निकटतम विकास खण्ड स्तर पर प्रभारी राजकीय कृषि रक्षा इकाई अथवा जनपद स्तर पर जिला कृषि रक्षा अधिकारी कार्यालय से सम्पर्क करें।

dainiklalsa
Author: dainiklalsa

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