हाथरस-25 अक्टूबर। अधिवक्ता तरूण कुमार शर्मा द्वारा नालसा (असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये विधिक सेवाऐं) योजना 2015 व संबंधित नियमों/अधिनियमों के धरातलीय अनुपालन हेतु अध्यक्ष सचिव राज्य व राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय तथा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष सचिव को पत्र लिखकर मांग की गयी है कि ऐसे कामगारों के विकास व उन्नयन हेतु निम्नांकित कार्यवाही की जाये कि असंगठित क्षेत्र के कामगार जैसे कृषि निर्माण, लघु उद्योग, ठेकेदारांे द्वारा बड़े क्षेत्र में नियोजित कामगार, घरेलू कामगार, जंगली पैदावार पर निर्भर कामगार, मछली पालन एवं स्वतः रोजगार जैसे रिक्शा खींचना, आटो चलाना, कुली आदि की दयनीय दशा एवं सुनिश्चित रोजगार की अनुपालनता हो।
उन्होंने कहा है कि समुचित वेतन बच्चों की उचित शिक्षा के अभाव तथा अन्य सरकारी योजनाओं जैसे कि स्वास्थ्य सेवा, प्रसूति लाभ, उपलब्ध न होने व कर्मकार प्रतिकर अधि.1923, कर्मचारी राज्य बीमा अधि. 1948, प्रसूति अधि. 1961, औद्योगिक उपवाद अधि. 1947, उपदान संदान अधि. 1972, कर्मचारी भविष्य निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधि.1952 आदि में अधिनियमित विधियों, वृद्धावस्था, स्वास्थ्य सहायता, मृत्यु, विवाह तथा दुर्घटना आदि की दशा में कोई समुचित सहायता व विधिक सेवाऐं न मिलने व मौजूदा विधि ढांचे की को दृष्टिगत रखकर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा उपरोक्त विषयक योजना बनाई गई है।
उपरोक्त योजनांतर्गत असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा अधि. 2008 व भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा षर्त विनियमन) अधि.1996 के अंतर्गत कर्मकारों के हितों के लिये विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के प्रचार की आवश्यकता पर जोर देते हुये विधिक सेवा प्रदान करने हेतु व्यवस्था राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा की गई है। जिसका उद्देश्य-सभी असंगठित कामगारों एक आवश्यक विधिक सेवाओं को संस्थागत बनाना।
सरकारी प्राधिकरण से सहयोग कर तथा जनहित याचिका द्वारा विधान/क्रियान्वयन में दूरी को समाप्त करना।
राज्य सरकार तथा जिला प्रशासन की व्यवस्था का इस्तेमाल सभी वर्गों के असंगठित कामगारों की पहचान कराना व उन्हें पंजीकृत कराना तथा सभी सरकारी योजनाओं के लाभों को योग्य लाभार्थियों तक पहुँचाना।
नियोक्ताओं को वैधानिक प्रावधानों तथा कामगारों को कार्य हेतु अच्छा वातावरण, आजीविका एवं सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता के प्रति जागरूक करना। कामगारों में वर्तमान विधान एवं योजनाओं के अंतर्गत उनकी पात्रता के बारे में सूचना फैलाना। असंगठित क्षेत्रों के सभी वर्गों के कामगारों की अनेक वर्ग के लिए उपलब्ध योजनाओं के अंतर्गत संबंधित प्राधिकरण में उनके पंजीकरण के लिए सहायता एवं सलाह देना। कामगारों को योजना के लाभों को प्राप्त करने में सहायता देना जिनके लिए वे अपनी जरूरतः योग्यता के अनुसार पंजीकृत हैं।
उपरोक्त विषयक योजना के अन्तर्गत मार्गदर्शक सिद्धांत तय करते हुये, सभी विधिक संस्थाओं द्वारा असंगठित कामगारों के लिये योजना लागू करते समय सिद्धांतों को ध्यान में रखते हेतु व्यवस्था की गई है कि-भारतीय संविधान की प्रस्तावना सभी नागरिकों के लिए प्रतिष्ठा व अवसर की समानता सुनिश्चित करती है तथा उनके गौरव का सम्मान करते हुए उनके बीच भाईचारे को बढ़ती है। अनुच्छेद 42 में आदेशित है कि राज्य कार्य के लिए न्यायोचित एवं मानवीय स्थित्ति तथा मातृत्व लाभों को सुरक्षित रखने हेतु प्रावधान बनाएगी। अनुच्छेद 43 द्वारा, राज्य सभी कामगारों के लिए काम, निर्वाह मजदूरी, उचित जीवन स्तर सुनिश्चित करते हुए कार्य स्थिति तथा पूर्ण मनोरंजन, अवकाश, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अवसर सुरक्षित करेगी।प्रत्येक नागरिक के गौरव को बनाये रखने का उद्देश्य वचन तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक कि एक कामगार का गौरव सुनिश्चित नहीं किया जाता। असंगठित क्षेत्र समाज के उपेक्षित क्षेत्र में से एक है तथा वे देश के नागरिक होने के कारण काम का अधिकार, न्यायोचित एवं मानवीय कार्य व्यवस्था, निर्वाह, मजदूरी, मातृत्व लाभ तथा उचित जीवन स्तर के समान रूप से हकदार हैं। विधिक सेवा प्राधिकरणों के लिए यह वैधानिक आदेश है कि वह संवैधानिक सुनिश्चितताओं को वास्तव में उपलब्ध कराये। विधिक सेवा प्राधिकरणों को प्रशासनिक निष्क्रियता के प्रतिहित प्रहरी के रूप में कार्य करना होगा।
सरकार द्वारा विधानों/अथवा योजनाओं आदि के रूप में किये गए कल्याण कार्यों में उद्धिष्ट लाभार्थियों अथवा पीड़ितों को उनके अधिकारों व योग्यताओं को हासिल करने के लिए व्यवस्था का इस्तेमाल करने की जरुरत है। असंगठित क्षेत्र के कामगार समाज के वंचित एवं असुरक्षित क्षेत्र से सम्बन्ध रखते हैं तथा वे व्यवस्था का इस्तेमाल करने में सक्षम नहीं होते हैं। विधिक सेवा प्राधिकरण का यह कर्तव्य है कि वह न्याय प्राप्ति तक उनकी पहुंच स्थापित करने में सहायता करे।
असंगठित क्षेत्र के कामगारों के वर्गों की बड़ी संख्या, प्रत्येक वर्ग में बहुत बड़ी जनसंख्या तथा बड़े भौगोलिक क्षेत्र में उनके फैलाव के कारण उन तक विधिक सेवा पहुंचाने के लिए परियोजनाबद्ध कार्यक्रम की आवश्यकता है। उन्हें उनके संवैधानिक अधिकारों की प्राप्ति के योग्य बनाने के लिए एक संस्थागत व्यवस्था, वचनबद्ध कार्यबल तथा लगातार प्रयासों को लम्बे समय तक करने की जरुरत है। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा उपरोक्त विषयक योजना के प्रभावी अनुपालन हेतु राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा विशेष सेल जो कि अलग से केवल इसी सेवा की निगरानी करेगा कि स्थापना की व्यवस्था करने एवं सेल के माध्यम से असंगठित कामगारों हेतु सेमिनार प्रशिक्षण कार्यक्रम, कानूनी साक्षरता कार्यक्रम आयोजित करने, योजनाओं का लाभ दिलाने, पंजीकरण के संबंध में सरकारी प्राधिकरणों के साथ सहयोग करने, हित लाभ प्राप्त करने हेतु फार्म भरवाने में सहायता करने पर कामगारों के दावे (मुकद्में/मामले) में कानूनी सलाह व सहायता देने व राज्य प्राधिकरण द्वारा नियत अन्य कोई कार्य करने की व्यवस्था की गई है।
विधिक सेवा संस्था को असंगठित कामगारों की पहचान का पहला काम सौंपते हुये कार्य की शर्तें व न्यूनतम मजदूरी, राज्य सामाजिक सुरक्षा बोर्ड तथा भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के गठन, कर के उपयोग, असंगठित क्षेत्र की योजना प्रकाशित कराने के लिए राज्य सरकारों को कहने एवं आवश्यक होने पर जनहित याचिका प्रस्तुत करने, कानूनी जगरूकता, इस संबंध में पुस्तिका/पर्चे प्रकाशित करने व उन्हें बंटवाने, दूरदर्शन, आकाशवाणी व क्षेत्रीय रेडियो के माध्यम से प्रचार, अर्धविधिक स्वयंसेवीगण का विशेष प्रशिक्षण, कामगार सहायता केन्द्र की स्थापना, उपयुक्त कार्य वातावरण नियोक्ताओं के सेमिनार/गोष्ठी के आयोजन पुनर्वास योजनाओं तथा कानूनी सहायता व कानूनी प्रतिनिधित्व की भी महत्वपूर्ण व्यवस्था राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा की गई है।
सामाजिक बदलाव लाकर असंगठित कामगारों के हितों को दृष्टिगत रखकर बनाई गई उक्त महत्वपूर्ण योजना का प्रभावी अनुपालन कहीं भी नहीं हो पा रहा है। जनपद में तो इस महत्वपूर्ण योजना से लगभग अछूता ही है। असंगठित कामगारों हेतु बनी इस प्रभावी योजना को मूर्त रूप देकर इसके अनुपालन से निश्चित रूप से ही गरीब, लाचार कामगारों का हित होने के साथ-साथ देश/प्रदेश व क्षेत्रीय स्तर पर क्रांतिकारी परिवर्तन होकर वास्तविक विकास होगा। उपरोक्त विषयक योजना का तत्काल प्रभावी अनुपालन देश, काल व परिस्थितियों को दृष्टिगत रखकर, विस्तृत जनहित में आवश्यक है।
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